श्रम मामलों का हाईकोर्ट कहे जाने वाले प्रदेश के इंडस्ट्रियल कोर्ट के स्टेट इंडस्ट्रियल कोर्ट में पिछले नौ महीने से चेयरमेन जज नहीं हैं। इसलिए मेंबर जज से काम चल रहा है। खास बात यह कि इस कोर्ट में चेयरमेन समेत दो मेंबर जजों का प्रावधान है, लेकिन राज्य गठन के बाद से आज तक केवल एक ही मेंबर की नियुक्त की जाती रही है।
इस वजह से इस अदालत में आने वाले मामलों की सुनवाई और निपटारे में विलंब होता रहा है। वर्तमान में भी करीब 100-125 मामले इस कोर्ट में चल रहे हैं। इस कोर्ट की एक बेंच बिलासपुर में भी लगती है। पर्याप्त जज न होने की वजह से रायपुर में इंडस्ट्रियल कोर्ट के मेंबर ही वहां महीने में दो बार कैंप कर सुनवाई कर केस निपटा रहे हैं।
इसलिए एसआईसी का महत्व
स्टेट इंडस्ट्रियल कोर्ट का महत्व इसलिए है कि यहां महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई होती है। श्रम कानूनों के मामले जो लोअर कोर्ट, जिला श्रम न्यायालयों में फैसलों के खिलाफ यहां अपील के रूप में भी दायर होते हैं। इसके अलावा ट्रेड यूनियनों में विवादों के प्रकरण भी यहां सुने जाते हैं। लेबर कोर्ट में सुनवाई करने वाले जजों को ही प्रमोट कर यहां नियुक्त किया जाता है।
कौन बन सकता है चेयरमेन जज
चेयरमेन जज बनने की भी योग्यता तय है। राज्य औद्योगिक न्यायालय के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति की योग्यता में शामिल है कि उनका उच्च न्यायिक सेवा वर्ग से होना जरूरी है। या सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश या सेवानिवृत उच्च न्यायालय के न्यायधीश होना चाहिए।
उन्हें 2015 के नियमों के अनुसार उच्च न्यायालय की सहमति उपरांत ही नियुक्ति दी जा सकती थी। एडीजे लेवल के जज या उच्च न्यायिक सेवा वाले को अवसर मिल सकता है। सरकार लेबर कोर्ट के किसी जज को इस योग्य समझती है तो उसे भी प्रमोट कर सकती है। न्यायिक सेवा से जुड़े प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को भी यह पद दिया जा सकता है।
चेयरमेन जज की नियुक्त पर फिलहाल हाईकोर्ट का स्टे है। मेंबर जज को अधिकृत कर पेंडिंग केस निपटाए जा रहे हैं।
- राम कुमार तिवारी, प्रिंसिपल सेक्रेटरी लॉ डिपार्टमेंट